आशियाँ पर करम-ए-बर्क़-ए-तपाँ है अब भी देखो गुलशन की फ़ज़ाओं में धुआँ है अब भी हम-सफ़ीरान-ए-चमन तुम को मुबारक हो बहार हम असीरों के मुक़द्दर में ख़िज़ाँ है अब भी दौर है संग-ए-हवादिस का मगर क्या कहिए दिल में इक कार-गह-ए-शीशा-गराँ है अब भी अब न वो दिल है न वो दिल की तमन्ना लेकिन चश्म-ए-जानाँ मिरी जानिब निगराँ है अब भी हम ने क्यूँ एक तबस्सुम की तमन्ना की थी आँख उस जुर्म पे ख़ूनाबा-फ़शाँ है अब भी रहनुमाई का ये जादू कोई देखे 'मैकश' गर्द-ए-रह पर हमें मंज़िल का गुमाँ है अब भी