आशियाँ उजड़ा मिरा तो क्या हुआ ग़म तो इस का है चमन सहरा हुआ था कुछ ऐसा ही तक़ाज़ा इश्क़ का हम ने देखा अपना घर लुटता हुआ था कभी दिल एक शहर-ए-आरज़ू रफ़्ता रफ़्ता यास का सहरा हुआ ज़र्रा ज़र्रा है दिल-ए-बेताब सा इक जहाँ है दर्द का मारा हुआ क्या ख़बर थी होगा मंज़िल का चराग़ इक मुसाफ़िर रास्ता भटका हुआ ज़ब्त-ए-दिल का हौसला तो देखिए ग़म का दरिया है अभी ठहरा हुआ आइने को देख कर शर्मा गए आप को शायद मिरा धोका हुआ अपनी रुस्वाई से मैं ख़ुश हूँ 'नज़ीर' ग़म तो ये है उन का ग़म रुस्वा हुआ