आश्ना दिल को जलाने आए तेरे क़िस्सा ही सुनाने आए दिल ही दिल में है पशेमाँ दोनो कौन अब किस को मनाने आए कुछ तो मिलने की हो सूरत पैदा तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ के बहाने आए इक तमन्ना है कि अब मैं रूठूँ और वो मुझ को मनाने आए मेरी नींदों में वो शामिल हो कर मुझ को मुझ से ही चुराने आए फिर फ़ज़ा उस के बदन सी महकी फिर बहारों के ज़माने आए