आश्नाई ब-ज़ोर नहिं होती By Ghazal << आया है सुब्ह नींद सूँ उठ ... आशिक़ बिपत के मारे रोते ह... >> आश्नाई ब-ज़ोर नहिं होती मत करो शर्र-ओ-शोर नहिं होती दोस्ती जो कि बे-तमअ हो है ज़र अगर दो करोर नहिं होती एक मरता हूँ तिस पे तू मत मर गोर पर और गोर नहिं होती Share on: