तेरे ग़म-ख़्वार का मा'मूल ख़ुदा ही जाने किस क़दर रहता है मशग़ूल ख़ुदा ही जाने हम ने उल्फ़त का सबक़ सीखा है दीवानों से उस का बा-क़ाएदा स्कूल ख़ुदा ही जाने जुब्बा-साई दर-ए-जानाँ पे किया करता हूँ किस लिए क्यों मिरा मा'मूल ख़ुदा ही जाने उजड़े गुलशन में मिरे दिल के बहारें आएँ दाग़-ए-दिल बन गए क्यों फूल ख़ुदा ही जाने आज-कल हम से वो ख़ाइफ़ हैं ख़िलाफ़-ए-आदत जाने क्या हम से हुई भूल ख़ुदा ही जाने देखते देखते 'आसी' ने हिदायत पा ली किस तरह हो गया मक़्बूल ख़ुदा ही जाने