आसमाँ इक ख़्वाब सा देखा गया रात का पियाला कोई औंधा गया क्यों दयार-ए-दाना-ए-गंदुम मिला मैं था गोया कीमिया गूँधा गया ज़ाइक़ा और फ़र्श की सीलन नसीब छत पे पैहम ख़ुश्क मौसम छा गया लब तलक पहुँचा है काँटों का शजर जिस्म में उगना उसे क्यों भा गया थी समझने या कि समझाने की बात देखते देखा मुझे समझा गया