आसमानों की बुलंदी से उतर आया हूँ ऐ ज़मीं मुझ को सहारा दे मैं घर आया हूँ मुद्दतों बा'द पुकारा मिरी वहशत ने मुझे मुद्दतों बा'द मैं सहरा में नज़र आया हूँ देख राहों में मिरी ख़ार बिछाने वाले मैं उधर छोड़ के गुलज़ार इधर आया हूँ संग हाथों में लिए बैठे हैं अहबाब यहाँ और मैं शानों पे सजाए हुए सर आया हूँ चश्म-ए-हैरत से जिसे देखा करेगी दुनिया रंग ऐसे तिरी तस्वीर में भर आया हूँ ख़ुद को चाहूँ भी तो अब देख नहीं पाऊँगा अपनी आँखें तिरी दहलीज़ पे धर आया हूँ इस क़दर गहरा धुँदलका था हुनर रस्तों में बड़ी मुश्किल से ज़माने को नज़र आया हूँ चमन-ए-शाइ'री छाई थीं खिज़ाएँ जिस पर ले के 'शीबान' वहाँ मैं गुल-ए-तर आया हूँ