आता है यही जी में फ़रियाद करूँ रोऊँ रोने ही से टुक अपना दिल शाद करूँ रोऊँ किस वास्ते बैठा है चुप इतना तू ऐ हमदम क्या मैं ही कोई नौहा बुनियाद करूँ रोऊँ यूँ दिल में गुज़रता है जा कर किसी सहरा में ख़ातिर को टुक इक ग़म से आज़ाद करूँ रोऊँ इस वास्ते फ़ुर्क़त में जीता मुझे रक्खा है यानी मैं तिरी सूरत जब याद करूँ रोऊँ ऐ 'मुसहफ़ी' आता है ये दिल में कि अब मैं भी रोने में तुझे अपना उस्ताद करूँ रोऊँ