आते ही तू ने घर के फिर जाने की सुनाई रह जाऊँ सुन न क्यूँकर ये तो बुरी सुनाई मजनूँ ओ कोहकन के सुनते थे यार क़िस्से जब तक कहानी हम ने अपनी न थी सुनाई शिकवा किया जो हम ने गाली का आज उस से शिकवे के साथ उस ने इक और भी सुनाई कुछ कह रहा है नासेह क्या जाने क्या कहेगा देता नहीं मुझे तो ऐ बे-ख़ुदी सुनाई कहने न पाए उस से सारी हक़ीक़त इक दिन आधी कभी सुनाई आधी कभी सुनाई सूरत दिखाए अपनी देखें वो किस तरह से आवाज़ भी न हम को जिस ने कभी सुनाई क़ीमत में जिंस-ए-दिल की माँगा जो 'ज़ौक़' बोसा क्या क्या न उस ने हम को खोटी-खरी सुनाई