आते जाते मौसमों का सिलसिला बाक़ी रहे रोज़ हम मिलते रहें और फ़ासला बाक़ी रहे खा गईं दरिया की मौजें ख़्वाब-आवर गोलियाँ बादबानी के लिए पागल हवा बाक़ी रहे कल कोई बूढ़ा मुसव्विर मुझ से मिलने आएगा ऐ मिरे मुंसिफ़ मिरी थोड़ी सज़ा बाक़ी रहे शायरी करते रहो लेकिन रहे इतना ख़याल दुश्मनों से दोस्ती का हौसला बाक़ी रहे