आतिश-ए-फ़िक्र बदन घुलता हो पैहम जैसे किसी नागिन ने कहीं चाटी हो शबनम जैसे बस इसी मोड़ से कुछ आगे है मंज़िल अपनी हादसे मौत निशान-ए-रह-ए-पुर-ख़म जैसे बर्फ़-आलूदा गुलों पर ये चमकती किरनें उन की हँसती हुई आँखें हुईं पुर-नम जैसे मौसम-ए-गुल में ये पत्तों के खड़कने की सदा नफ़स-ए-उम्र की आवाज़ हो मद्धम जैसे ज़ख़्म-ए-दिल रोज़ कुरेदो तो हो लज़्ज़त अफ़्ज़ूँ इक मुदावा है ग़म-ए-यार हो मरहम जैसे ओस में डूबे शगूफ़ों की उदासी का धुआँ किसी बीमार की आँखें हुईं पुर-नम जैसे आँखों आँखों में कोई बात हुई फूलों में अपने गुलशन की फ़ज़ा हो गई बरहम जैसे हुस्न ही हुस्न है कश्मीर के बुत-ख़ाने में दूधिया चाँदनी फैली हुई पूनम जैसे ख़ूब 'जाफ़र'-रज़ा अहबाब तुम्हारे हैं ये जो हवाओं से बदल जाते हैं मौसम जैसे