आतिश-ए-हुस्न से इक आब है रुख़्सारों में ऐ तिरी शान कि पानी भी है अँगारों में दम निकल जाएगा रुख़्सत का अभी नाम न लो तुम जो उठ्ठे तो बिठा दूँगा अज़ादारों में जा के अब नार-ए-जहन्नम की ख़बर ले ज़ाहिद नद्दियाँ बह गईं अश्कों की गुनहगारों में नौबतें नाला-ए-रुख़्सत का पता देती हैं मातम-ए-इश्क़ की आवाज़ है नक़्क़ारों में मुझ को इस दर्द की थोड़ी सी कसक है दरकार जो दवा बन के बटा है तिरे बीमारों में बे-तलब उस ने दिखाया रुख़-ए-रौशन 'मुज़्तर' नाम मूसा का नहीं उस के तलब-गारों में