आतिश-ए-तब ने की है ताब शुरूअ तू भी कर दीदा-ए-पुर-आब शुरूअ क्यूँ न अबतर हो आँसुओं से चश्म की है लड़कों ने ये किताब शुरूअ शब मैं चाहा करूँ कुछ उस से सवाल बिन सुने ही किया जवाब शुरूअ सर्फ़ा-ए-ख़ुश्क भी है इक हीला करनी ज़ाहिद को थी शराब शुरूअ नाम सुनते ही उस का बस 'क़ाएम' फिर क्या तू ने इज़्तिराब शुरूअ