आया है ख़याल-ए-बे-वफ़ाई क्यूँ जी वही गुफ़्तुगू फिर आई ओ बुत न सुनेगा कोई मेरी क्या तेरी ही हो गई ख़ुदाई रोको रोको ज़बान रोको देने न लगो कहीं दुहाई सहरा में हुई गुहर-फ़िशानी काम आई मिरी बरहना-पाई चाहा लेकिन न बच सके हम आख़िर तेग़-ए-निगाह खाई तोड़ा काँटों ने आबलों को बरबाद हुई मिरी कमाई बोसा हम आज माँगते हैं करते हैं क़िस्मत-आज़माई तौबा-शिकनी शबाब में कर कब तक ऐ जान-ए-पारसाई काटा दिन तो तड़प तड़प कर आफ़त की रात सर पर आई रुख़्सत है 'नसीम' जल्द देखो कर लो गर हो सके भलाई