आया न राह पर वो सितमगर किसी तरह सीधा हुआ न अपना मुक़द्दर किसी तरह सर फोड़िए कि खींचिए नाले फ़िराक़ में होगा न वस्ल-ए-यार मयस्सर किसी तरह क़ातिल ने कोशिशें तो हज़ारों ही कीं मगर निकला न दम मिरा तह-ए-ख़ंजर किसी तरह बदला लें उन बुतों से सितम का तो ख़ूब हो सुन ले हमारी दावर-ए-महशर किसी तरह वहशत ने लाख लाख उभारा हमें मगर छोड़ा न हम ने कूचा-ए-दिलबर किसी तरह मिन्नत भी की ख़ुशामदें भी कीं हज़ार बार आया न मेरे घर वो सितमगर किसी तरह 'शबनम' वही है उस की कचावट अभी तलक बदले न हम ने यार के तेवर किसी तरह