आया तो दिल-ए-वहशी दर-बंद-ए-नियाज़ आया बरगश्ता मुक़द्दर था सर-गश्ता-ए-नाज़ आया इक हर्फ़-ए-शिकायत पर क्यूँ रूठ के जाते हो जाने दो गए शिकवे आ जाओ मैं बाज़ आया नौ-वारिद-ए-हस्ती उठ किस वहम में बैठा है होती है अज़ाँ सुन ले चल वक़्त-ए-नमाज़ आया बर्दाश्ता-ख़ातिर था इशरत की हक़ीक़त से मैं दाम-ए-मुसीबत में आसूदा-ए-राज़ आया राहत-गह-ए-तुर्बत से तू ने तो बहुत रोका मरमर के मगर मैं भी ऐ उम्र-ए-दराज़ आया भूला हुआ फिरता है दिल अपनी हक़ीक़त को ले ऐ ग़म-ए-हस्ती ले इक महव-ए-मजाज़ आया कल हय्या-अला की सी आवाज़ इक आई थी 'नातिक़' ने कहा सुन कर हाँ बंदा-नवाज़ आया