अब बताओ जाएगी ज़िंदगी कहाँ यारो फिर हैं बर्क़ की नज़रें सू-ए-आशियाँ यारो अब न कोई मंज़िल है और न रहगुज़र कोई जाने क़ाफ़िला भटके अब कहाँ कहाँ यारो फूल हैं कि लाशें हैं बाग़ है कि मक़्तल है शाख़ शाख़ होता है दार का गुमाँ यारो मौत से गुज़र कर ये कैसी ज़िंदगी पाई फ़िक्र पा-ब-जौलाँ है गुंग है ज़बाँ यारो तुर्बतों की शमएँ हैं और गहरी ख़ामोशी जा रहे थे किस जानिब आ गए कहाँ यारो राहज़न के बारे में और क्या कहूँ खुल कर मीर-ए-कारवाँ यारो मीर-ए-कारवाँ यारो सिर्फ़ ज़िंदा रहने को ज़िंदगी नहीं कहते कुछ ग़म-ए-मोहब्बत हो कुछ ग़म-ए-जहाँ यारो वक़्त का तक़ाज़ा तो और भी है कुछ लेकिन कुछ नहीं तो हो जाओ मेरे हम-ज़बाँ यारो एक मैं हूँ जिस को तुम मानते नहीं 'शाइर' और एक मैं ही हूँ तुम में नुक्ता-दाँ यारो