अब भी हिम्मत है जान बाक़ी है मेरे मुँह में ज़बान बाक़ी है जो गया आज तक नहीं लौटा किस का नाम-ओ-निशान बाक़ी है रस्म-ए-दुनिया है आने जाने की और भी इक जहान बाक़ी है तुम समझते हो मिल गई दुनिया हश्र का इम्तिहान बाक़ी है गिर चुकी हैं हज़ार दीवारें और भी इक मकान बाक़ी है वो हवेली अमीर-ए-शहर की है जिस का नाम-ओ-निशान बाक़ी है मेरे अज्दाद का अभी 'माहिर' अज़्मतों का निशान बाक़ी है