अब चमन में हम-नफ़स और हम-ज़बाँ कोई नहीं हम-नशीं कोई नहीं है राज़दाँ कोई नहीं किस से हाल-ए-दिल कहें किस को सुनाएँ हाल-ए-ज़ार चारा-साज़-ए-दर्द-ए-दिल-सोज़-ए-निहाँ कोई नहीं कल भी मैं तन्हा रहा हूँ और तन्हा आज भी कल वहाँ कोई न था और अब यहाँ कोई नहीं फ़स्ल-ए-गुल आते ही उठती है सदा-ए-ज़ाग़ ओ बूम ग़ुंचा-ओ-गुल और बुलबुल शादमाँ कोई नहीं नुक्ता-चीं महफ़िल की रौनक़ बन गए हैं आज-कल बज़्म-ए-याराँ में सितम है नुक्ता-दाँ कोई नहीं यूँ तो कहने को सभी थे हम-सफ़ीर-ओ-हम-ख़याल हम-सफ़र कोई नहीं अब हम-इनाँ कोई नहीं