अब दिल को हम ने बंदा-ए-जानाँ बना दिया इक काफ़िर-ए-अज़ल को मुसलमाँ बना दिया दुश्वारियों को इश्क़ ने आसाँ बना दिया ग़म को सुरूर दर्द को दरमाँ बना दिया इस जाँ-फ़ज़ा इताब के क़ुर्बान जाइए अबरू की हर शिकन को रग-ए-जाँ बना दिया बर्क़-ए-जमाल-ए-यार ये जल्वा है या हिजाब चश्म-ए-अदा-शनास को हैराँ बना दिया ऐ ज़ौक़-ए-जुस्तुजू तिरी हिम्मत पे आफ़रीं मंज़िल को हर क़दम पे गुरेज़ाँ बना दिया उट्ठी थी बहर-ए-हुस्न से इक मौज-ए-बे-क़रार फ़ितरत ने इस को पैकर-ए-इंसाँ बना दिया ऐ सोज़-ए-ना-तमाम कहाँ जाए अब ख़लील आतिश-कदे को भी तो गुलिस्ताँ बना दिया वारफ़्तगान-ए-शौक़ को क्या दैर क्या हरम जिस दर पे दी सदा दर-ए-जानाँ बना दिया आँसू की क्या बिसात मगर जोश-ए-इश्क़ ने क़तरे को मौज मौज को तूफ़ाँ बना दिया क्या एक मैं ही मैं हूँ इस आईना-ख़ाने में मुझ को तो कश्फ़-ए-राज़ ने हैराँ बना दिया