अब ऐ बे-दर्द क्या इस के लिए इरशाद होता है फिर अपनी ख़ाक से पैदा दिल-ए-बर्बाद होता है तसव्वुर जब अनीस-ए-ख़ातिर-ए-नाशाद होता है जहान-ए-दिल तिरी तस्वीर से आबाद होता है असीरान-ए-वफ़ा घबराएँ क्यूँ तज्वीज़-ए-ज़िंदाँ से यहीं तो इम्तिहान-ए-फ़ितरत-ए-आज़ाद होता है जगह मिलती नहीं जिस को शब-ए-ग़म महशर-ए-दिल में वो हंगामा लब-ए-ख़ामोश में आबाद होता है बहार आई है इस्तिक़बाल करने बाब-ए-ज़िंदाँ तक नहीं मालूम 'सीमाब' आज कौन आज़ाद होता है