अब ग़ैर से भी तेरी मुलाक़ात रह गई सच है कि वक़्त जाता रहा बात रह गई तेरी सिफ़ात से न रहा काम कुछ मुझे बस तेरी सिर्फ़ दोस्ती बिज़्ज़ात रह गई कहने लगा वो हाल मिरा सुन के रात को सब क़िस्से जा चुके ये ख़ुराफ़ात रह गई दिन इंतिज़ार का तो कटा जिस तरह कटा लेकिन कसो तरह न कटी रात रह गई बस नक़्द-ए-जाँ ही सिर्फ़ 'असर' ने किया निसार ग़म की तिरे सब और मुदारात रह गई