अब इस क़दर भी बदल जाएगा ख़बर नहीं थी फ़ना से दूर निकल जाएगा ख़बर नहीं थी मिरे बदन की हरारत उतारने वाला मिरी तपिश से पिघल जाएगा ख़बर नहीं थी वो इब्तिदा-ए-मोहब्बत के पहले लम्हे को बना के आख़िरी पल जाएगा ख़बर नहीं थी बढ़ेगी लुक़्मा-ए-दिल से भी आगे उस की हवस ये नफ़्स तन को निगल जाएगा ख़बर नहीं थी गिला था आतिश-ए-नोक-ए-क़लम से काग़ज़ को मगर सियाही से जल जाएगा ख़बर नहीं थी समझ रहे थे जिसे नक़्श-बर-सराब कभी वो मौज बन के उछल जाएगा ख़बर नहीं थी बहुत था साया-ए-अब्र-ए-ग़ुबार-ए-दश्त मगर ज़रा सी देर में ढल जाएगा ख़बर नहीं थी ये संग-ए-ख़्वाब 'शफ़क़' आँख के पसीने पर किसी भी वक़्त फिसल जाएगा ख़बर नहीं थी