अब जो लौटे हो इतने सालों में धूप उतरी हुई है बालों में तुम मिरी आँख के समुंदर में तुम मिरी रूह के उजालों में फूल ही फूल खिल उठे मुझ में कौन आया मिरे ख़यालों में मैं ने जी-भर के तुझ को देख लिया तुझ को उलझा के कुछ सवालों में मेरी ख़ुशियों की काएनात भी तू तू ही दुख-दर्द के हवालों में जब तिरा दोस्तों में ज़िक्र आए टीस उठती है दिल के छालों में तुम से आबाद है ये तन्हाई तुम ही रौशन हो घर के जालों में साँवली शाम की तरह है वो वो न गोरों में है न कालों में क्या उसे याद आ रहा हूँ 'वसी' रंग उभरे हैं उस के गालों में