अब के बिखरा तो मैं यकजा नहीं हो पाऊँगा तेरे हाथों से भी वैसा नहीं हो पाऊँगा मुझ को बीमार करेगी तिरी आदत इक दिन और फिर तुझ से भी अच्छा नहीं हो पाऊँगा ये तो मुमकिन है कि हो जाऊँ तिरा ख़ैर-अंदेश हाँ मगर इस से ज़ियादा नहीं हो पाऊँगा अब मिरी ज़ात में बस एक की गुंजाइश है मैं हुआ धूप तो साया नहीं हो पाऊँगा यूँ तो मुश्किल ही बहुत है मिरा हाथ आना और हाथ आया तो गवारा नहीं हो पाऊँगा तू बड़ी देर से आया मुझे ज़िंदा करने अब नमी पा के भी सब्ज़ा नहीं हो पाऊँगा मुझ में इतनी नहीं तासीर मसीहाई की ज़ख़्म भर सकता हूँ ईसा नहीं हो पाऊँगा इन दिनों अक़्ल की चलती है हुकूमत दिल पे मैं जो चाहूँ भी तुम्हारा नहीं हो पाऊँगा इतना आबाद है तुझ से मिरे अंदर का शहर तुझ से बिछड़ा भी तो सहरा नहीं हो पाऊँगा