अब के जुनूँ हुआ तो गरेबाँ को फाड़ कर दुनिया को छोड़ जाऊँगा दामन को झाड़ कर ये आइना फ़रेब-ए-नज़र है बहुत न देख इक रोज़ तुझ को पेश करेगा बिगाड़ कर मेहमाँ सराए-जाँ में कोई ठेरता नहीं जब से चला गया उसे कोई उजाड़ कर 'फ़र्रुख़' हवा है तेज़ क़दम को जमा के रख वर्ना ये फेंक देगी तुझे भी उखाड़ कर