अब के मौसम में कोई ख़्वाब सजाया ही नहीं ज़र्द पत्तों को हवाओं ने गिराया ही नहीं देख कर जिस को ठहर जाएँ मुसाफ़िर के क़दम ऐसा मंज़र तो कोई राह में आया ही नहीं क्यूँ तिरे वास्ते इस दिल में जगह है वर्ना कोई चेहरा मिरी आँखों में समाया ही नहीं उस ने भी माँग लिया आज मोहब्बत का सुबूत एक लम्हे के लिए जिस को भुलाया ही नहीं मुझ को तन्हाई ने घेरा है कई बार मगर उस की यादों ने मगर साथ निभाया ही नहीं जिस की ख़ुश्बू से महकते मिरे घर के दर-ओ-बाम वक़्त ने रंग कोई ऐसा दिखाया ही नहीं रौशनी अपने मुक़द्दर कहाँ होगी 'शबीन' जब दिया हम ने अँधेरों में जलाया ही नहीं