अब ख़्वाहिश-ए-तलाफ़ी-ए-माफ़ात भी गई जी में जो थी इक बात सो वो बात भी गई अफ़्कार-ए-नौ-ब-नौ ने किया वक़्त राएगाँ किन उलझनों में फ़ुर्सत-ए-औक़ात भी गई रद्द-ए-सवाल से नहीं बे-ख़ौफ़ अर्ज़-ए-शौक़ फिर बात क्या करेंगे अगर बात भी गई अहवाल-ए-हाल ही को मुक़द्दर समझ लिया लो आज फ़िक्र-ए-गर्दिश-ए-हालात भी गई हैं सुब्ह के हिसाब में अख़्तर शुमारियाँ चमका न आफ़्ताब तो क्या रात भी गई है आज आबगीना-ए-एहसास चूर चूर जाने कहाँ रवानी-ए-जज़्बात भी गई वो आज खो गया है 'मुनव्वर' हुजूम में उम्मीद-ए-यार बहर-ए-मुलाक़ात भी गई