अब किसी बात का तालिब दिल-ए-नाशाद नहीं आप की ऐन-इनायत है ये बे-दाद नहीं आप शर्मा के न फ़रमाएँ हमें याद नहीं ग़ैर का ज़िक्र है ये आप की रूदाद नहीं दम निकल जाएगा हसरत ही में इक दिन अपना सच कहा तुम ने कुछ इंसान की बुनियाद नहीं पहले नाले को सुना ग़ौर से फिर हँस के कहा आप की सारी ही बनावट है ये फ़रियाद नहीं ब'अद उस्ताद के है ख़त्म ग़ज़ल 'बेख़ुद' पर मोजज़ा कहिए इसे तब्-ए-ख़ुदा-दाद नहीं