अब मुझ को दर्द सहने की आदत नहीं रही ये सच है चाह से अभी चाहत नहीं रही दो-पल का भी सुकून मयस्सर नहीं मुझे तड़पा हूँ यूँ कि चैन की हाजत नहीं रही दिल से लगा के याद को आजिज़ हुआ हूँ मैं अब तेरी याद में वही राहत नहीं रही शिकवे-शिकायतें भी करूँ किस से मैं भला जब ख़ुद मैं देखने की बसारत नहीं रही ईमान-दारी से तो वही लोग दूर हैं कहते हैं जो यहाँ कि सदाक़त नहीं रही सब दुख तुम्हारे सह लिए 'काशिफ़' ख़ुशी ख़ुशी सहने की और मुझ में तो ताक़त नहीं रही