अब मुझ को रुख़्सत होना है कुछ मेरा हार-सिंघार करो क्यूँ देर लगाती हो सखियो जल्दी से मुझे तय्यार करो रो रो कर आँखें लाल हुईं तुम क्यूँ सखियो बेहाल हुईं अब डोली उठने वाली है लो आओ मुझ को प्यार करो ये कैसा अनोखा जोड़ा है जो आज मुझे पहनाया है मैं हूरों जैसी दुल्हन बनी अब उट्ठो और दीदार करो इक हार है सुर्ख़ गुलाबों का इक चादर सुर्ख़ गुलाबों की और कितना रूप चढ़ा मुझ पर इस बात का तो इक़रार करो इक बार यहाँ से जाऊँगी मैं लौट के फिर कब आऊँगी तुम आह-ओ-ज़ारी लाख करो तुम मिन्नत सौ सौ बार करो हाँ याद आया इस बस्ती में कुछ दिए जलाए थे मैं ने तुम उन को बुझने मत देना बस ये व'अदा इक बार करो