अब न वो शोर न वो शोर मचाने वाले ख़ाक से बैठ गए ख़ाक उड़ाने वाले ये अलग बात मयस्सर लब-ए-गोया न हुआ दिल में वो धूम कि सुनते हैं ज़माने वाले किसी मंज़िल की तरफ़ कोई क़दम उठ न सका अपने ही पाँव की ज़ंजीर थे जाने वाले दिल सा वहशी कभी क़ाबू में न आया यारो हार कर बैठ गए जाल बिछाने वाले दिन की कजलाई हुई धूप में क्या देखते हैं शाम होते ही परेशाँ नज़र आने वाले जल्वा-ए-हुस्न सज़ा-वार-ए-नज़र हो न सका कुछ नहीं देख सके आँख उठाने वाले याद-ए-अय्याम के दरवाज़े से मत झाँक मुझे आँख से दूर न हो दिल में समाने वाले तेरी क़ुर्बत में गुज़ारे हुए कुछ लम्हे हैं दिल को तन्हाई का एहसास दिलाने वाले इन्ही झोंकों से है 'शहज़ाद' चमक आँखों में यही झोंके हैं चराग़ों को बुझाने वाले