अब न तड़पाए फ़रेब-ए-ग़म-ए-हिज्राँ मुझ को नज़र आते हैं वो रग रग में ख़िरामाँ मुझ को जान कर उस ने चराग़-ए-शब-ए-हिजराँ मुझ को कर दिया सुब्ह-ए-अज़ल ही से फ़रोज़ाँ मुझ को अब कहाँ जाऊँ बता गर्दिश-ए-दौराँ मुझ को हर तरफ़ मिलने लगी मंज़िल-ए-जानाँ मुझ को मुझ से रौशन है हर इक गोशा-ए-इम्कान-ए-हयात फिर भी कहते हैं चराग़-ए-तह-ए-दामाँ मुझ को दूर होता है कहीं दिल से नशेमन का ख़याल भूल सकती है कोई बर्क़-ए-गुलिस्ताँ मुझ को को अर्सा-ए-शौक़ पे छाता ही चला जाता हूँ ले के उभरा है तिरा हुस्न-ए-नुमायाँ मुझ को देखिए फिर मिरे जज़्बात-ए-जुनूँ की लहरें कह तो दे कोई ज़रा नंग-ए-गरेबाँ मुझ को आह वो दिल कि जिसे दर्द की लज़्ज़त न मिली हाए वो दर्द कि जिस का हुआ अरमाँ मुझ को मैं वही राज़-ए-हक़ीक़त हूँ कि बरसों 'बासित' पर्दा-ए-कुफ्र में ढूँडा किया ईमाँ मुझ को