अब तक तो सारे ग़म से मिरे बे-ख़बर मिले बतलाऊँ हाल-ए-दिल जो कोई चारागर मिले लम्हे हुसूल-ए-शौक़ के बस इस क़दर मिले भटके हुए को राह में जैसे ख़िज़र मिले उन के बग़ैर कर न सके ज़िंदगी ब-ख़ैर रंज-ओ-अलम के साथ तो हम उम्र-भर मिले दिल था कहीं लगा कहीं आँखें बिछी हुईं ये सारे एहतिमाम तिरी राह पर मिले करना है ताज़ा फिर मुझे अफ़्साना तूर का ऐ काश मेरी उन की कहीं पर नज़र मिले गुज़रे हैं अक़्ल-ओ-होश-ओ-ख़िरद की हुदूद से हम हों कहीं तो तुम को हमारी ख़बर मिले 'राज़ी' झुके थे हुस्न-ए-चमन पर कि एक दिन शीराज़े गुल के बिखरे हुए ख़ाक पर मिले