अब तो बे-क़ाबू हुए जाते हैं दर्द-ए-दिल से हम कैसे गुज़रेंगे क़रार-ए-ज़ब्त की मंज़िल से हम दुश्मनों से दोस्ती का काम हम ने ले लिया आज मौजों के सहारे मिल गए साहिल से हम इक ज़रा सी आँख के तिल में ये क़ुदरत है तिरी सारी दुनिया देखते हैं आँख के इक तिल से हम ख़ाकसारी ज़ेब है हम को नहीं शायाँ ग़ुरूर गुल में मिल जाएँगे हम पैदा हुए हैं गुल से हम शब को तारों दिन को दीवारों से बहलाते हैं दिल काटते हैं रोज़-ओ-शब फ़ुर्क़त में किस मुश्किल से हम उन का रोब-ए-हुस्न ही 'नश्तर' हिजाब-ए-हुस्न है आँख उठा कर देख सकते हैं उन्हें मुश्किल से हम