अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे मर के भी चैन न पाया तो किधर जाएँगे तुम ने ठहराई अगर ग़ैर के घर जाने की तो इरादे यहाँ कुछ और ठहर जाएँगे ख़ाली ऐ चारागरो होंगे बहुत मरहम-दाँ पर मिरे ज़ख़्म नहीं ऐसे कि भर जाएँगे पहुँचेंगे रहगुज़र-ए-यार तलक क्यूँ कर हम पहले जब तक न दो आलम से गुज़र जाएँगे शोला-ए-आह को बिजली की तरह चमकाऊँ पर मुझे डर है कि वो देख के डर जाएँगे हम नहीं वो जो करें ख़ून का दावा तुझ पर बल्कि पूछेगा ख़ुदा भी तो मुकर जाएँगे आग दोज़ख़ की भी हो जाएगी पानी पानी जब ये आसी अरक़-ए-शर्म से तर जाएँगे नहीं पाएगा निशाँ कोई हमारा हरगिज़ हम जहाँ से रविश-ए-तीर-ए-नज़र जाएँगे सामने चश्म-ए-गुहर-बार के कह दो दरिया चढ़ के गर आए तो नज़रों से उतर जाएँगे लाए जो मस्त हैं तुर्बत पे गुलाबी आँखें और अगर कुछ नहीं दो फूल तो धर जाएँगे रुख़-ए-रौशन से नक़ाब अपने उलट देखो तुम मेहर-ओ-माह नज़रों से यारों की उतर जाएँगे हम भी देखेंगे कोई अहल-ए-नज़र है कि नहीं याँ से जब हम रविश-ए-तीर-ए-नज़र जाएँगे 'ज़ौक़' जो मदरसे के बिगड़े हुए हैं मुल्ला उन को मय-ख़ाने में ले आओ सँवर जाएँगे