अब तो मंज़िल न है सफ़र कोई हम-सफ़र है न रहगुज़र कोई हम चराग़ों के घर में रहते हैं हम को जलने का है न डर कोई आज सूरज से मैं ये पूछूँगा मेरी क़िस्मत में है सहर कोई जो ख़यालों में मेरे रहता है उस की मिलती न ही ख़बर कोई ऐसे गुलशन में आ गए 'सरवर' जैसे सहरा में हो शजर कोई