अब तो तुम भी जवाँ हुए हो देखेंगे दिल को बचाओगे तुम मिल जो गया हम-चश्म कोई फिर आँख उसी से लड़ाओगे तुम अब जो हम तुम से करते हैं तुम भी किसी से करोगे वही हम से तुम्हारा सुलूक है जैसा वैसा ही बदला पाओगे तुम बे-ताबी से करोगे क्या क्या न कई किसी की मज्लिस में आओगे तुम बैठोगे तुम फिर आओगे तुम उठ जाओगे तुम रअशा थी ज़बाँ में लुक्नत पाँव बेड़ी मोहरा देंगे मुँह से कुछ का कुछ निकलेगा दिल में जो ठहराओगे तुम वो तो तुम्हारी सीख तुम्हीं से बात में बात निकालेगा मेरी सूरत अपना सा मुँह ताक के फिर रह जाओगे तुम नाम को दाना दो दो दिन तक मेरी तरह देखोगे नहीं जब मैं बहुत समझाऊँगा तो थोड़ा सा खाना खाओगे तुम नई नई चोटें खा खा कर जब बे-कल हो हो जाओगे मुझ को हमदर्द अपना समझ कहने को ग़म के आओगे तुम हर हर बात में रो रो के घबरा घबरा कर बोलोगे कैसे ग़रीब ग़रीब से हो कर दिल की बातें सुनाओगे तुम मेरे हाल पे शे'रों के मज़मून बहुत याद आएँगे दस दस बार एक एक ग़ज़ल को मुझ से फिर पढ़वाओगे तुम दिल में तुम अपने मत लाना जीते रहे गर मीर-'रज़ा' दे दिल उस का हाथ में ले के जैसे दिल को लगाओगे तुम