अब तू ने गुल न गुल्सिताँ है याद उसी मुखड़े की हर ज़माँ है याद हम-नशीं कह ले क़िस्सा-ए-मजनूँ हम को भी दिल की दास्ताँ है याद ग़ुंचा काटे था जिस को देख के लब क्यूँ सबा तुझ को वो वहाँ है याद मुस्तक़िल मुर्ग़-ए-दिल जो तड़पे है किस की सीने में पर-फ़िशाँ है याद सबक़-ए-गिर्या अश्क को क्या दूँ आप ही इस तिफ़्ल को रवाँ है याद गुल से क्या मुख़्तलित हूँ ऐ बुलबुल मुझ को वो आफ़त-ए-ख़िज़ाँ है याद आह ऐ चर्ख़-ए-पीर, 'क़ाएम' नाम याँ जो रहता था इक जवाँ है याद