अब वो पहला सा सिलसिला भी नहीं आँख में कोई रत-जगा भी नहीं हिज्र की इक कसक तो है लेकिन मैं मोहब्बत की शाएरा भी नहीं ये इबादत नहीं मोहब्बत है आप इंसान हैं ख़ुदा भी नहीं दर्द-ए-दिल की दवा का ज़िक्र ही क्या अब लबों पर कोई दुआ भी नहीं कोई एहसास कैसे जागेगा आप के घर में आइना भी नहीं आप को पूजती रहूँ ता-उम्र आप कुछ ऐसे देवता भी नहीं