अब वो सौदा नहीं दीवानों में ख़ाक उड़ती है बयाबानों में ग़म-ए-दौराँ को गिला है मुझ से तू ही तू है मिरे अफ़्सानों में दिल-ए-नादाँ तिरी हालत क्या है तू न अपनों में न बेगानों में बुझ गई शम्अ सहर से पहले आग जलती रही परवानों में दिल ने छोड़ा न उमीदों का ख़याल फूल खिलते रहे वीरानों में 'सैफ़' पहलू में ये आहट ग़म की कौन रोता है बयाबानों में