अब वो मुझ से ख़फ़ा नहीं होता अब कोई हादिसा नहीं होता रात आती है रात जाती है कोई वा'दा वफ़ा नहीं होता आप मेरे क़रीब रहते हैं कम मगर फ़ासला नहीं होता कितने बादल बरस गए लेकिन ख़ुश्क पौदा हरा नहीं होता दिल की तारीकियाँ नहीं जातीं दूर अंधेरा ज़रा नहीं होता ये करिश्मे हैं सब अक़ीदत के कोई पत्थर ख़ुदा नहीं होता जिस्म आज़ाद हो गया लेकिन दिल क़फ़स से रिहा नहीं होता मैं इक ऐसी शराब हूँ 'नीलम' जिस को पी कर नशा नहीं होता