अब याद तिरी दर्द को बहला न सकेगी मैं चाहूँ भी तो मुझ को हँसी आ न सकेगी कुछ कम नहीं ऐ दोस्त भुलाने की मुसीबत माना कि मिरी याद भी अब आ न सकेगी बेदाद-ए-करम चाहिए हम संग-दिलों को ये कम-निगही आप की तड़पा न सकेगी बस मेरे ही दम तक है ये हंगामा-ए-उल्फ़त फिर गर्दिश-ए-आलम इसे दोहरा न सकेगी कुछ ज़ब्त-ओ-सुकूँ चाहिए इस राह में 'साहिर' बे-ताबी-ए-दिल हुस्न को शर्मा न सकेगी