फिर ख़याबाँ बा'द शबनम देखिए फ़ौरन खुला नासेहा तो दोस्ती की विर्द पर दुश्मन खुला हश्र तक फ़िरऔन को मिट्टी नकारे यार सुन खुल गया खुलता नहीं था आख़िरश मुर्दन खुला शेफ़्ता का ख़ंद-ए-नीमा आस्तान-ए-इश्क़ पर जब खुलाए दिल ब-दस्त-ए-दिल खुला तन-मन खुला एतिमादों का तसव्वुर झूटे शेवे हर जगह टुक छुपी दीवाना-वारी टुक दिवाना-पन खुला रफ़्तगान-ए-बे-कसी उफ़्ताद पा मिस्मार पा मिस्ल-ए-ज़िंदाँ आज फिर इस ग़ार से रहज़न खुला ली चिलम अज़ खींच कर ख़दशे से अंदोह-ओ-अलम मुँह जला पत्ती जली शब-ता-सहर ईंधन खुला नाला-ए-बैरून से जा कर हमारी छत खुली हैफ़ है रख़शंदगी ताख़ीर तक रौज़न खुला ख़ुद 'अबान' उन से कहो कह दो शिआ'र-ए-आम से शुक्र मानो तुम ज़माने जिस पे अपना फ़न खुला