अबस तोड़ा मिरा दिल नाज़ सिखलाने के काम आता ये आईना था उस ख़ुद-बीं को इतराने के काम आता जलाया मुसहफ़-ए-दिल तू ने क्यूँ बर्क़-ए-तग़ाफ़ुल से जो सच बोलूँ तुझे झूटी क़सम खाने के काम आता न मलता ख़ाक में उस गुल के ग़म का अश्क अगर मेरा कसी बुलबुल के शायद आब और दाने के काम आता दिल-ए-सद-चाक का शाना मिरा टूटा तिरे हाथों वगर्ना ज़ुल्फ़-ए-दूद-ए-आह सुलझाने के काम आता लिए 'उज़लत' के मूए सर बयाबाँ के बबूलों ने जो बचता ये चँवर जारूब वीराने के काम आता