साँस के हम-राह शो'ले की लपक आने को है ऐसा लगता है कोई रौशन महक आने को है फिर पस-ए-पस्पाई मेरा हौसला ज़िंदा हुआ आसमाँ से फिर कोई ताज़ा कुमक आने को है एक ख़िल्क़त ही नहीं है बद-गुमानी का शिकार उस की जानिब से मिरे भी दिल में शक आने को है एक मुद्दत से चराग़-ए-सर्द सा रक्खा हूँ मैं इस तवक़्क़ो' पर कि आँचल की भड़क आने को है ऐ सफ़र की राएगानी आयतों के साथ चल फिर वही जंगल वही सूनी सड़क आने को है बेद-ए-मजनूँ हो रहे हैं तीर क्या तलवार क्या मेरे दुश्मन में भी अब शायद लचक आने को है अब तो इस छत पर कोई माह-ए-शबाना चाहिए साया-ए-क़ामत फ़सील-शाम तक आने को है रास्ते गुम हो रहे हैं धुँद की पहनाई में सर्दियों की शाम है फिर उस का चक आने को है