फिर रग-शो'ला-ए-जाँ-सोज़ में नश्तर गुज़रा नाला क्यूँ आबला-ए-दिल से उलझ कर गुज़रा मैं हूँ दिल-ए-दारी-ए-अफ़्सून-ए-वफ़ा पर नाज़ाँ जो रक़ीबों पे न गुज़रा था वो मुझ पर गुज़रा क्या मुहीत-ए-मय-ए-बे-रंग में तूफ़ाँ आया जोश-ए-रंग अंजुमन-ए-नाज़ से बाहर गुज़रा तिश्ना-ए-हसरत-ए-जावेद हूँ मैं क्या जानूँ क्यूँ गले से मिरे तल्ख़ाबा-ए-कौसर गुज़रा आओ मेरे दिल-ए-अफ़सुर्दा की तमकीं देखो जाओ इस कश्मकश-ए-नाज़ से मैं दर-गुज़रा लुट गई जान तो उम्मीद के पहलू ढूँडे मिट गई राह तो अंदेशा-ए-रहबर गुज़रा इस तकल्लुफ़ से गई उम्र-ए-गिराँ-माया 'वफ़ा' एक दम सैंकड़ों बरसों के बराबर गुज़रा