मैं याँ बैठा तो तुम वाँ उठ गए ऐ यार क्या बाइ'स हुए बे-दिल ही अपने आप क्यूँ बेज़ार क्या बाइ'स इनायत की नहीं अगली से अब आसार क्या बाइ'स किए हैं बंद तुम ने रख़्ना-ए-दीवार क्या बाइ'स कहा मैं ने मिरे घर भी कभू आओगे ये बोले मैं क्यूँ आऊँ मुझे क्या वास्ता क्या कार क्या बाइ'स निडर ला-तक़्नतू पढ़ कर गुनाहों से था मैं अपने ये वाइ'ज़ क्यूँ डराते हैं मुझे ग़फ़्फ़ार क्या बाइ'स तुम्हारी ख़ातिर-वातिर में ऐ गुल-रू ये क्या आया सो मुझे क्यूँ देख कर हँसते हो तुम हर बार क्या बाइ'स फ़क़त इक दीद को नादीदा दिल और दीदा है अपना तो ऐ बे-दीद दिखलाता नहीं दीदार क्या बाइ'स पस-ए-मुर्दन मिरी बालीं पे रो कर ये लगे कहने तू क्यूँ चुपका पड़ा है आशिक़-ए-बीमार क्या बाइ'स सख़ी से सोम बेहतर है जवाब साफ़ जो देवे कभी इंकार क्या मौजिब कभी इक़रार क्या बाइ'स बिगाड़ उस आइना-रू से नहीं गर आप का 'एहसाँ' बनी हैरत से क्यूँ तुम सूरत-ए-दीवार क्या बाइ'स