अभी अश्कों में ख़ूँ शामिल नहीं है मोहब्बत का जुनूँ कामिल नहीं है ज़माने से मोहब्बत का अभी तक ये हासिल है कि कुछ हासिल नहीं है न आँखें फोड़ इस दश्त-ए-जुनूँ में ये राह-ए-नाक़ा-ए-महमिल नहीं है ज़मीं पर बैठ जा ऐ शैख़ तू भी ये बज़्म-ए-मय तिरी महफ़िल नहीं है तबीबों से कहो घर लौट जाएँ ये दर्द-ए-दिल वो दर्द-ए-दिल नहीं है हमीं 'अख़लाक़' उस से बे-ख़बर हैं किसी पल हम से वो ग़ाफ़िल नहीं है