अभी हिज्र दामन में उतरा नहीं है मगर वस्ल का भी तो चर्चा नहीं है अभी धूप आँगन में खुल के न आई अभी रात से रब्त टूटा नहीं है ख़बर तेरे आने की जिस दिन मिली थी उसी दिन से खिड़की पे पर्दा नहीं है अना को लिए कब से बैठा है दरिया जगह से समुंदर भी हिलता नहीं है नदी आस में सूख जाएगी इक दिन ये नादान बादल बरसता नहीं है गया ज़ीस्त का आख़िरी मोड़ कह कर किसी के लिए वक़्त ठहरा नहीं है वहाँ इश्क़ का पाँव पड़ता है अक्सर जहाँ से 'सुमन' आगे रस्ता नहीं है